निशा(Stop Rape)

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वो चिल्लाती रही दर्द से,

लेकिन उन्हें मज़ा आ रहा था।

वो अकेली लड़की और वो तीन दरिंदें जो हमारे सभ्य समाज के नाम पे धब्बा हैं।

हाँ,

मैं सामूहिक बलातकार की ही बात कर रहा हूँ।

कुछ पल के हवस के लिए किए गये एक सामूहिक बलात्कार की बात कर रहा हूँ।

उसी हवस की बात कर रहा हूँ जिसे अंग्रेजी भाषा में सेक्स कहतें हैं।

आपको गुस्सा आया होगा ना या फिर बहुत अजीब लगा होगा ना सेक्स शब्द पढ़ के।

और मैंने सुना है सेक्स लिखना बोलना हमारे यहाँ बहुत बुरी बात होती है।

और वो भी मेरी उम्र में तो इसे बोलना या लिखना मतलब चरित्रहीन वाली बात होती है।

ये बहुत खराब शब्द है ऐसा मैंने सुना है,और इसे बड़ों के सामने या ऐसे खुलेआम नही लिखना बोलना चाहिए ये भी मैंने सीखा है।

और मैंने भी जरा भी इन सीख और मर्यादा का ख्याल नही किया और लिख दिया ऐसे ही इसे।

आप लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगें।
लेकिन मेरे बारे में गलत सोचने से पहले जरा रुकिए,

जरा सोचिए’

जब तीन,चार,पाँच…….
लोग मिल के खुली सड़क पे,चलती बस में, रेलगाड़ी के डिब्बे में, माँ के सामने बेटी का,बेटी के सामने माँ का,पिता के सामने बेटी का,पति के सामने पत्नी का……हाइवे पे कहीं भी  समूह में जुट के एक बेटी,माँ,पत्नी,बहन,दोस्त,भाभी……..बलात्कार करते हैं तब शर्म नही आती है इंसानियत को।

तब ये सीख कहाँ जाती है,

और तब कोई क्यों नही बचाता है उन्हें उन दरिंदों से,क्या वे दरिंदें इंसान नही होतें हैं और क्या उन्हें सीख नही मिली होती है बचपन में कई इस शब्द को अगर बोलना लिखना इतना बुरा है तो वो जो कर रहें है वो कितना बुरा है।

अगर तब उनको को शर्म नही आती है तो मुझे भी लिखने में नही आती शर्म।।
तो आइए मिलते हैं एक और अबला से जिसका कसूर बस इतना है कि वो जवान हो गयी।

उसका शारीरिक विकास हो गया,वो भारत मे पैदा हुई है और सबसे बड़ी बात यह है कि उस पागल ने खुद को इस देश की सड़कों पे महफ़ूज समझ लिया।
निशा अपने ट्यूशन से वापस आ रही थी,शाम को वो कंप्यूटर क्लास जाती है जिससे उसे वापस आने में 9 बज जातें हैं।

पर दिल्ली जैसे बड़े शहर में 9 कोई ज्यादा नही होते।

लेकिन जब बात एक लड़की की हो तो इस देश में हर पल खतरा होता है।

निशा रोज़ की तरह ही अपनी साईकल से घर की तरफ आ रही थी।

निशा के घर और ट्यूशन के बीच महज़ कुछ ही किमी की दूरी है।

लेकिन उसे घर जाते वक्त एक झड़ियों जैसा पार्क के रास्ते से होकर गुजरना होता है।
निशा बहुत ही मॉर्डन ख़्वाल वालो लड़की थी और बेपरवाह भी इसलिए आज के पहले उसे कभी भी इन रास्तों और पेड़ों से डर नही लगा।

आज भी उस पल तक वो इन रास्तों से नही डरती थी जब तक उसकी रूह को तीन दरिंदों ने छुआ नही था।

निशा रोज़ के जैसे ही कान में लीड लगाए हुए गाना सुनती अपनी साईकल लेके चली आ रही थी।

तभी पार्क की झड़ी की तरह से तीन लड़के उसके साईकल के सामने आ के खड़ा हो गयें।

तीनों लड़कों को सामने खड़ा देख निशा ने तुरंत साईकल का ब्रेक लगाया और कान से लीड निकल के गुस्से से बोली—
“”क्या प्रॉब्लम है भाई,ऐसे बीच में क्यूँ खड़े हो।

किसी ने जवाब नही दिया।
ऐसा नही था कि वो सड़क एक दम से सुनसान थी बल्कि लेकिन उस वक्त एक भी गाड़ी नही गुजरी वहाँ से।
निशा दुबारा से कुछ बोल पाती इससे पहले ही उन तीनों ने उसे दबोच लिया।
निशा चिल्लाई क्या कर रहे हो तुम लोग मुझे छोड़ो,,,,,,,,,,,
लेकिन उन बदमाशों ने निशा को पकड़ के पास में ही खड़ी अपनी गाड़ी में भर के चल दिये।

निशा की साईकल किताब सब सड़क के किनारें बिखरा पड़ा था।

वहां से बहुत सारी गाड़ियाँ गुजरी बहुत से लोग गुजरें लेकिन खुद के जल्दी के निशा के समान की तरफ किसी का। भी ध्यान नही गया।

जिसने देखा भी उसने नज़र अन्दाज कर दिया।
उधर उन तीन दरिंदों ने निशा को गाड़ी में भर के एक जगह पे ले गयें जहाँ पे एक एक कार तीनों ने उसके साथ बलात्कार किया।
केवल उन तीनों ने ही नही वहाँ पे पहले से महज़ूद एक और सख्स ने निशा की आबरू सामूहिक तौर पे नीलम की।
निशा जो कि अभी महज़ सोलह वर्ष की एक प्यारी सी लड़की किसी के हाथों की राखी किसे के सपनों की बेटी किसी की जिंदगी थी।

वो उन दरिंदों के सामने गिड़गिड़ाती रही रहम की दुहाई देती रही लेकिन उनका दिल नही पिघला।

वो अपने हवस के मज़े लेते रहें और एक जिंदगी को खत्म करते रहें।
जब निशा उन दरिंदों के जुल्म से बेजान हो गयी।

तब उन्होंने उसे उसी जगह पे ला के फेंक दिया जहाँ से उसे ले गयें थें।

निशा की जिंदगी बर्बाद करने वाले दरिंदें निशा से बहुत बड़े थें,

हर एक गुनहगार तीस साल के ऊपर था मतलब की निशा के दुगने उम्र का एक तौर पे आप कह सकते हो कि निशा के पापा या चाचा के उम्र का लेकिन हकीकत निशा का बलात्कार था।
बगल बिखरी किताब साईकल के पास फेंकीं हुई निशा हमारे पूरे समाज के सफेद शर्ट पे पड़ी उस स्याही की जैसी थी जिसे कितना भी धुल ले लेकिन अब वो छूटेगी नही।

जिस वक्त उन दरिंदों ने निशा को गाड़ी से फेंका उस वक्त उनकी गाड़ी के पीछे कई और लोग भी आ रहें थें लेकिन किसी ने उनको नही रोका।
निशा की जिंदगी तो खत्म हो गयी उस रात के बाद ।

खत्म हो गयी उसके इंजीनियर बनने की पढ़ाई,

और खत्म हो गयी एक भाई के हाथों पे हर साल बंधने वाली राखी।

अब निशा दुबारा इस धरती पे पैदा नही होना चाहेगी,और ना ही उसके माँ-पापा चाहेगें कि किसी भी जन्म में उन्हें लड़की हो।

लेकिन हमने भी बहुत कुछ किया निशा के इस सामूहिक बलात्कर के विरोध में,

अरे क्यूँ नही किया”!

मोमबत्तियां लेके जन सभा निकली,

टीवी पे न्यूज़ सुना,नेताओं का भाषण सुना।

और उसके नाम का शेम के साथ फेसबुक,इंस्टाग्राम और बहुत सारी जगहों पे पोस्ट भी किया।
लेकिन एक चीज़ बस नही किया वो था खुद को बदलना,बस हम एक दिन बाद भूल गयें निशा को फिर वैसे ही जीने लगें जैसे पहले जीते थें।

फिर से हम वैसे हो गयें सड़क पे हो रही हर
घटना को अनदेखा करने लगें।

जब तक सोच नही बदलेगी तब तक हमारे आस पास ही जी रहे ऐसे दरिंदों निशा की आबरू नीलाम करते रहेंगें।
Suraj Sharma✍✍
🙏Stop Rape she is not machine of sex.✍