आदित्य अनिका की कहानी

Love Motivation books

11/2/2016

शाम के तक़रीबन सात बजें थें,मैं आज थोड़ा सा परेशान था तो कॉफी पीने ओल्ड स्कूल कैफे में पहुचा।

वहाँ की कॉफी मुझे बहुत पसंद है,और यहाँ घर से दूर एक कॉफी ही तो सहारा होता है और जब भी मुझे माँ की याद आती है मैं चला आता हूँ इस खूबसूरत से कैफ़े में।

मेरी सारी आदतों में शुमार ये भी एक आदत ही है मुझे लायब्रेरी पार्क और कैफे में घंटो बैठने की आदत है।

जब भी मैं इन जगहों पे अकेले बैठा होता हूँ,तो मुझे बहुत सुकून मिलता है।

मानो ये सारी जगहें मेरे रूह के करीब हैं।

रविवार का दिन हो और माँ के कॉफी की याद आये तो एक ही जगह दिखती है मुझे ओल्ड स्कूल कैफे,

नाम ही जितना खूबसूरत है उतनी ही जायके दार कॉफी भी होती है इस जगह की।

पिछले एक  दो साल जब से मैं इलाहाबाद रह रहा हूँ और पहली बार जब भाई ने मुझे ये जगह दिखाई थी तभी से अब तक यहाँ मैं हर रविवार और कभी कभी तो और भी दिन जरूर आता हूँ।

आज की बैचैनी जाने क्यों थी,पर माँ की याद और घर का प्यार शायद हम जैसे स्टूडेंट ही समझ सकतें हैं,जो घर से दूर रहते हों।

तो इन्ही सब यादों को समेट के मैं एक टेबल पे जा बैठा,आज इस जगह पे थोड़ी सी खामोशी सी थी अमूमन रविवार के दिन तो सारी टेबलें भरी हुई होती हैं।

मैं बैठा सोच ही रहा था कि तभी छोटू दूर की टेबल से ही बोला,, “”आदित्य भइया क्या आपकी कॉफी लाऊं?

मैंने मुस्कुरा के सर हिला दिया,और अंदर कॉफी लेने चला गया।

छोटू बहुत ही प्यार बच्चा है,उम्र तकरीबन सोलह साल होगी घर की आर्थिक कमजोरी के कारण केवल पांचवी तक पढ़ा है।

पिछले दो साल जब से मैं यहाँ आ रहा हूँ,तब से मैं इसे जातना हूँ।

अरे याद है मुझे आज भी कैसे पहले ही दिन छोटू ने कॉफी की ट्रे मेरे शर्त पे गिरा दी थी,और एक दम से डर गया था।

पर उस वक्त मेरे द्वारा कुछ ना बोले जाने पे छोटू का मुझसे कुछ अलग ही लगाव हो गया है।

आदित्या भइया आज आप बहुत सुंदर लग रहे हो इस ब्लैक शर्ट में,,,””छोटू मेरी कॉफी रखते हुए बोला।

शुक्रिया छोटे मियाँ,””मैं भी थोड़ा सा मजाकिये अंदाज में जवाब दिया।

छोटू कॉफी रख के चला गया।

मैं उस एक कप कॉफी के साथ उस टेबल पर बैठा अपना फोन चेक कर ही रहा था कि मैं कहीं और ही बैठ जाती हूँ।

अरे नही,नही आप बैठ सकती हैं,””मैंने उसकी बातों को सुन के तुरंत जवाब दिया।

शुक्रिया,,””एक प्यारी सी स्माइल के साथ वो बोली।

मैं आज थोड़ा सा असहज महसूस कर रहा था,वो सामने बैठी छोटू दुबारा आया मेरी टेबल की तरह और अबकी बार पास बैठी लड़की से ऑर्डर लेने के लिए।

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छोटू-“,अनिका दी आपके लिए क्या लाऊं।

छोटू एक कॉफी और बर्गर लाओ,और हाँ बर्गर में सॉस थोड़ा ज्यादा डालना।,,””वो लड़की छोटू को मुस्कुरा के अपना आर्डर बतायी।

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मुझे लगा कि छोटू इसे कैसे जानता है,शायद ये भी यहाँ काफी दिनों से आ रही थी

चलो कोई बात नही मैं अपने एक कप कॉफी के साथ थोड़ा सा जेंटलमैन तरीके से सामने रखें अपने लैपटॉप के कीबोर्ड पे उंगुलियां धीरे धीरे चलाने की कोशिश में लगा गया।

मैं अक्सर इसी कैफे में बैठ के घंटों अपनी बुक के लिए स्टोरी ढूंढता हूँ और जब स्टोरी नही मिलती है तो इस कैफ़े से कुछ एहसास चुरा के यहीं बैठ के ब्लॉग लिखता हूँ।

तो आज भी वही करने की कोशिश में लगा था मैं,पर जाने क्यू मेरी नज़र कीबोर्ड और लैपटॉप से ज्यादा सामने बैठी उस लड़की की तरफ चुपके चुपके जा रही थी

पिछले तीन मिनट में मैं उसकी तरफ दस से ज्यादा बार देख चुका था और केवल एक लाइन ही लैपटॉप में लिखा था वो भी मैं खुद नही जाना पाया क्या लिखा है।

तभी छोटू उसका आर्डर लेके आ गया छोटू मुस्कुराते हुए उसका आर्डर दिया और चला गया। .

जाते जाते वो मुझसे फिर से पूछ गया,”आदित्य भैया एक और कॉफी लाऊं?

हाँ,छोटू लाओ,””मैं थोड़ा संकोचते हुए बोला

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अमूमन मैं भी  जब तक कुछ लिख नही लेता तब तक यहाँ से जाता नही हूँ और इस दौरान तीन चार कॉफी तो पी ही लेता हूँ

छोटू के दुबारा पूछने पे वो लड़की मेरे पहले कप की तरफ इस तरह से देखी जैसे उसे लगा मैं कई दिनों से भूखा हूँ और कॉफी पी के अपना पेट भर रहा

वैसे मैंने सुना था लड़कियाँ ज्यादा देर तक चुप नही रह सकती और तब तो और भी चुप नही रह सकती जब उनके सामने कोई चीज उनके मन को भा जाये या उनका मन किसी चीज के लिए उत्सुक हो जाये
ऐसा ही कुछ मेरे सामने बैठी उस लड़की के भी दिमाग मे चल रहा था शायद उसे मेरे लैपटॉप और दूसरी कप कॉफी में ज्यादा ही ई इंटरेस्ट आ गया,और खुद को रोकते रोकते वो आखिर में जब छोटू दुबारा से मेरे लिए कॉफी रख के गया तो वो पूछ ही उठी,,

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“””हेलो,आपको कॉफी ज्यादा पसंद है क्या?

एक फेक स्माइल के साथ एक बहुत ही उत्सुक सा प्रश्न आखिर कर उसके मुंह से निकल ही आया।

जी ऐसा ही कुछ समझ लीजिए,,””मैंने बेहद खूबसूरती के साथ उसके सवालों का जवाब दे दिया।

अच्छा है,”वो मुस्कुरा के बोली और अपनी कॉफी उठा के पीने लगी।

कुछ देर तक मैं अपने लैपटॉप के कीबोर्ड से जूझता रहा ।

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तभी फिर से वो लड़की बोल उठी,””एनीवे ई आम अनिका,अनिका पुरोहित।

हे,,मैं आदित्य शर्मा””,,मैंने भी खुद का परिचय दिया।

वैसे मैं काफी देर से देख रही हूँ,आप लैपटॉप में कुछ लिख रहे हो,,”””अनिका ने बड़ी उत्सुकता से मुझसे पूछा।

जी,मैं एक लेखक हूँ,और एक युवा ब्लोगेर हूँ तो बस कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ।

आप राइटर हो,’अनिका ने एक अलग ही उत्साह के साथ पूछा।

जी हाँ,””मैं

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इसके बाद उसके सवाल और मेरे जवाब कुछ पल बाद ऐसा लगने लगा कि वो मुझे पिछले उन्ही दो सालों से जानती है जिन दो सालों से मैं इलाहबाद को जनता हूँ।

लेकिन इस सवाल और जवाब के दौरान मेरी नज़र केवल और केवल उसके चेहरे पे ही थी।

जाने क्यों आज पहली दफा मैं किसी लड़की से इतना प्रभावित हो रहा था।

पिछले एक से डेढ़ घंटों में मैंने लिखा तो एक भी लाइन नही उसके बदले थोड़ा सा बेचैन जरूर होने लगा।

और ये पहली ही बार था जब मैं इस कैफ़े से बिना कुछ लिखे वापस जाने वाला था।

उसकी बातें मुझे इतनी प्यारी लग रहीं थी कि बस जी कर रहा था कि उसे बस सुनता ही रहूँ।

इस बात चीत के दौरान छोटू तीन बार और आ और जा चुका था।

मतलब मैं कुल मिला के पांच कॉफी और अनिका जो मेरी दूसरी कॉफी पे आश्चर्य थी वो भी चार कॉफी पी चुकी थी।

इस चार कप कॉफी में जो चीज सबसे ज्यादा घुली थी वो थी दो अजनबियों की एक अजनबी सी मुलाकात जो कुछ ही घण्टों में एक अजीब से दोस्ती के रिश्ते में बदल गया,ऐसा रिश्ता जो शुरू तो सिर्फ कुछ पल पहले हुआ पर उसका असर मानों सदियों से चली आ रहे रिश्तों की तरह से होने लगा था।

ये रिश्ता सबसे अलग होने वाला रिश्ता था।

कॉफी और बातें खत्म होते होते रात के तक़रीबन साढ़े आठ बज चुके थें।
मैं सोच ही रहा था कि ये कॉफी वाली मीटिंग खत्म ना हो,तभी

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वो अपने फोन को चेक करते हुए बोली,””

सॉरी मुझे जाना होगा,काफी टाइम हो चुका है

और ये बोलते हुए ही वो उठ गयी और छोटू को बुला के बिल पूछने लगी।

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मैंने भी और लड़कों की तरह तुरन्त ही उसे टोका,”

अरे आप क्या कर रही हैं,मैं दे दूंगा बिल आप जाओ।

ऐसे कैसे आप दे देंगे,एक तो मैं अपनी टेबल पे आ के बैठी,तो बिल मैं ही दूंगी,”उसके इस ज़िद में एक नए जमाने की आज़ाद लड़की की छवि झलक रही थी,जो किसी पे निर्भर नही है

मुझे उसके अंदर की इस लड़की को देख के बहुत अच्छा लगा और मैंने उसे ही बिल देने दिया

बिल देके वो उसी मुस्कान के साथ अलविदा बोल गए जिस मुस्कान के साथ उसने मेरी टेलब के लिए पूछा था

उसकी ये मुस्कन मेरे दिल मे एक अजीब सी कशिश छोड़ गयी

ऐसे कशिश जो रात भर मुझे सोने नही दिया

रात आज यूँ गुजर रही थी कि मानों आंखों से नींद ही गायब है और अगर भूल से नींद आ भी जाये तो एक चेहरा मुस्कुराते हुए धीरे से मेरे कानों में कुछ बोल के गायब हो जा रहा था

इस बेचैनी में और घड़ी की सुइयां गिनते हुए जैसे तैसे ये रात गुजरी।

12/2/2016

आज की सुबह मेरा मन था कि मैं कैफ़े जाऊं पर नही जा सकता था।

क्योकि आज मुझे वाराणसी जाना था अपनी चेचरी बहन की शादी में

मैं ट्रेन पे बैठ तो वाराणसी जाने को पर दिल कह रहा था उस कैफ़े चलने के लिए जहाँ अनिका से मुलाकात हुई थी

एक बात और बार बार मुझे परेशान कर रही थी,काश उसका नम्बर लिया होता,पर जो लम्हा गुजर जाता है वो वापस नही आता इसलिए अब ये बातें केवल सोचने भर की ही थीं

यहाँ मेरी ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी वाराणसी के लिए,मुझे वनारस बहुत पसंद है,यहाँ आने का अपना अलग ही मज़ा है

एक हफ्ता के इस शादी समारोह में इलाहाबाद की सारी यादें,मानों बिसर सी गयीं अपने सारे लोग मम्मी पापा मतलब की परिवार को पा के अक्सर लोग दुनिया दारी भूल ही जातें हैं, वैसे हम भी पर एक चीज अभी भी रातों को मुझे परेशान करती है

वो थी अनिका की मुस्कुराहट,पर शायद ही अब कभी उससे मुलाकात हो पाती मुझे तो उसके नाम के सिवा कुछ भी नही पता था।

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20/2/2016

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आज एक सप्ताह बाद वापस इलाहाबाद आना हुआ मेरावैसे इलाहाबाद को प्रकृति ने वो सारी खूबी दिया है जो एक खूबसूरत शहर को चाहिए होता है

एक तरफ जहाँ गंगा की पवित्रता धर्मिकता को बढ़ती है वहीं शहर की युवा हवा इश्क की खुशबू लेके हर जवां दिल तक जाती है

एक तरफ जहाँ किताबों की भीड़ लिए कटरा मार्केट अपने रास्तों पे सपनों को चलते देखता है तो वहीं यूनिवर्सिटी हर प्रकार की प्रतिभा की गवाह बनती है
एक तरफ जहाँ इलाहाबाद के दिल मे राजनीति का संगम है वहीं उसके सांसों में मेहनत और जज़्बे का अटल प्रतिभा का गोदाम भी है।

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जब भी मैं घर से या कहीं बाहर से इलाहबाद में प्रवेश करता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है मैं युवाओ से भरी एक अलग ही दुनिया मे आ रहा हूँ,एक ऐसी दुनिया जिसके आंखों में बस ऊंचाई है,जिसकी बातों में सकारत्मकता के साथ साथ तहज़ीब की एक अलग ही विरासत है।

और जिसके युवा कंधें झुके नही हैं बल्कि अपनी मेहनत और जज़्बों के दम पे पूरे हिंदुस्तान को इन्हीं कंधों पे उठाने के लिए हर पल तैयार हैं।

कभी आप भी आ के देखो इलाहबाद यहाँ की आबो हवा किसी ऑक्सीजन से कम नही होगी।

मैंने तो पिछले दो सालों में अल्फ्रेड पार्क का इश्क और विश्वविद्यालय की मेहनत सब को देखा है।

अब तक मुझपे इलाहबाद के किताबों का ही असर था पर पिछले सप्ताह हुई कैफ़े की मुलाकात के बाद ऐसा लगता है,कि अब अल्फ्रेड पार्क का इश्क थोड़ा सा मुझमें भी घुलना चाहता है।

वैसे कहें तो इलाहबाद जो प्रकृति ने खास मक़सद से बनाया है।

और आज फिर से इलाहबाद के एहसास में जीते हुए मैं वाराणसी से इलाहबाद आ गया।

मेरी ट्रेन तक़रीबन सात बजे पहुँची।

मेरा दोस्त शुभम पहले से मुझे लेने आया था,शुभम का घर इलाहाबाद में ही है।

तो उसी के बाइक और सारी चीजे मैं यूज़ करता हूँ यहाँ पे।

पिछली बाद मैंने पापा को मम्मी के माध्यम से बोला था इलाहबाद में बाइक लेने के लिए पर उन्होंने साफ मना कर दिया।

बोले घर पे बाइक लिया था वहाँ रिक्से से आओ जाओ बाइक की कोई जरूरत नही है।

और उस एक बार के बाद मेरी हिम्मत नही हुई कभी दुबारा से बाइक के लिए बोलने को।

और इलाहाबाद आने के कुछ दिन बाद ही शुभम जैसा दोस्त भी तो मिल गया जिसने कभी होने भी नही दी।

शुभम आज मुझे अपने घर ले जाना चाहता था,,

बोला मम्मी बोली हैं आज यहाँ रुक जाएगा कल से बोलना हॉस्टल में रहेगा।

अब ऑन्टी ने बोला है तो मैं मना थोड़ी कर सकता हूँ।

तो स्टेशन से पहले हम उसी कॉफी कैफ़े में गयें जहाँ में अक्सर जाता हूँ और जहाँ मेरी अनिका से मुलाकात हुई थी।

वैसे शुभम के साथ होने पे मुझे किसी की भी याद नही आती पर जैसे ही शुभम ने बाइक उस कैफ़े की तरफ मोड़ी मुझे फिर से अनिका की वही स्माइल याद आ गयी जो आज से एक हफ्ता पहले उसने मेरे सामने बिखेरी थी।

हम दोनों कैफ़े में पहुँचे,शुभम की उस कैफ़े में मुझसे भी ज्यादा जान पहचान थी,उसके पापा शहर के एक बड़े बिजनेस मैन थें तो उसकी काफी चलती थी इस शहर में,पर शुभम बहुत प्यारा और संस्कारी लड़का है।
हम दोनों दोस्त जब साथ होतें हैं तो हमें दुनिया के किसी तीसरे व्यक्ति की जरूरत नही होती है।

शुभम चाहता तो अपनी गर्लफ्रैंड रागिनी को बुला सकता था हम कभी ऐसा नही करते हैं।

हमारी दोस्ती ना दोस्ती से कहीं आगे की है।

मुझे हॉस्टल न मिला होता तो शायद मैं अभी शुभम के घर पे ही रह के पढ़ाई करता।

हम दोनों बैठ के वाराणसी के सफर का ज़िक्र कर ही रहें थें कि छोटू आ गया हमारा आर्डर लेने।

शुभम ने उसे आर्डर दिया।

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और तभी छोटू जाते जाते मुझसे बोला”,,

आदित्य भैया,कल अनिका दी आयी थीं और आपको पूछ रहीं थीं।

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इतना बोल के वो आर्डर लेने चला गया,इधर शुभम की उत्सुकता बढ़ गयी।

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अनिका…””,,शुभम बहुत आश्चर्य से पूछा।

वो यार……….”’,,,, मैंने शुभम को उस दिन की सारी बात विस्तार से बता दिया।

शुभम सारा कुछ सुन के जोर जोर से हँसने लगा और बोला”””,,,,पहली बार किसी लड़की के लिए जनाब बेचैन हुए और उसका पता और नम्बर तक ना ले पायें डेढ़ घण्टे की बात चीत में।

मैं अपनी जगह पे बैठा शुभम को देख रहा था,आज तक इसने एक भी मौका छोड़ा  है मेरी खिचाई करने का तो आज कैसे छोड़ देता।

हमने कॉफी खत्म की और शुभम के घर को चल दिये।

पिछली बार जब मैं गया था शुभम के घर मुझे याद है ऑन्टी ने कितना सारा खिलाया था मुझे।

तो शुभम के घर जाने से पहले ये डर मेरे अंदर बना रहता है कितना सारा खाना खाना पड़ेगा।

शुभम भी बोलता है,””यार तू जब भी घर आता है,मम्मी इतनी सारी डिश बना देती हैं कि दिमाग पागल हो जाता है किसे खाऊं।

वैसे भी ऑन्टी से मिलके ना माँ की याद आ जाती है ऐसा लगता है अपने घर पे आये हैं।

बहुत ही सरल स्वभाव की महिला हैं।

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5/3/2016

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वाराणसी से आने के बाद मैं भी अपनी पढ़ाई के उलझन में उलझ गया।

बहुत दिनों बाद शुभम कॉलेज समय पे आज आया है,और उसने हाथ में कुछ लिया है।

उसके हाथ में पिज़्ज़ा का पैकेट है,मुझे लगा ये घर से लेके आ रहा होगा,

पर वो मेरे पास आने के पहले ही उन सारे दोस्तों को बुला लिया जिनके दम पे ही हमारे कॉलेज लाइफ की रौनक है।

उसने सबको पिज़्ज़ा तो खिला दिया पर सबके बार बार पूछने पे भी किसी को नही बताया कि आखिर किस खुशी में वो हमपे,हमपे मतलब सारे दोस्तों पे इतनी मेहरबानी कर रहा है।

और पूरे दिन बार बार पूछने पे भी उसने कुछ नही बताया,और मुझे आज बहुत दिन बाद कॉफी पीने चलने के लिए बोला।

हाँ,वैसे काफी दिन हो चुके हैं मुझे भी उस कैफ़े में गये हुए,और पिछले कुछ दिनों में ना तो मैंने कुछ लिखा है ना ही कोई ब्लॉग पोस्ट किया,
हम कैफ़े में गये पर आज थोड़ा सा अगल था कैफ़े का नज़ारा।

आज शुभम ने पहली बार अपनी गर्लफ्रैंड को इस कैफ़े में बुलाया था,वैसे हम साथ बाहर जातें हैं पर इस कैफ़े में केवल मैं और शुभम ही आतें थें आज के पहले पर आज वो बदल चुका है।

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मैंने शुभम की तरफ प्रश्न भरे चहरे से देखा,वो समझ गया कि मैं क्या कहना चाहता हूँ पर बात को टालते हुई बोला,””आओ बैठतें हैं।

मैं भी कुछ ज्यादा ना सोचते हुए बैठने लगा।

वैसे रागिनी भी अकेली नही आई है उसके साथ भी पहले से ही उसकी कोई दोस्त बैठी है।

मैं जैसे ही सामने से बैठने गया,तभी देखा कि रागिनी के साथ बैठी वो दूसरी लड़की कोई और नही बल्कि अनिका ही है।

मुझे एक पल को भरोसा तो नही हुआ कि ये वही अनिका है जिससे मैं कैफ़े में मिला था उस दिन पर वही है।

जैसे ही मैं बैठा अनिका बिना कुछ बोले फिर से उसी अंदाज में मुस्कुराई जिस मुस्कुराहट के चलते अभी भी रातों को मैं चैन से नही सो पता हूँ।

तभी रागिनी ने अनिका से मेरा और शुभम का परिचय करती हुई बोली,””

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ये शुभम है,’मेरा बॉयफ्रेंड।

और ये आदित्य है,”हम दोनों का सबसे प्यारा दोस्त।

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अनिका दुबारा से मुस्कुराई और बोली,””इन्हें मैं जानती हूँ,हम पहले भी मिल चुके हैं।

क्यों राइटर साहब,””अनिका के इस सवाल और जवाब में थोड़ी सी शरारत छुपी है शायद वो मेरे राइटर होने की चुटकी ली रही है या उसका स्वाभव ही ऐसा चुलबुल है।

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ये सारा खेल शुभम का है,ये तो मुझे पता हो गया पर ये बात रागिनी और अनिका दोनों को नही पता है।

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शुभम मेरे कुछ बोलने के पहले ही बोल दिया,””

हे अनिका,’शायद तुमने अभी हमारे राइटर बाबू की राइटिंग नही देखी लगता है।

हाँ,’मैं तो बस इतेफाक से एक रोज़ इसी जगह पे आदित्य से मिली,”अनिका 

अच्छा तो आप दोनों पहले भी मिल चुके हैं,”शुभम शरारत भरी आवाज में कहा।

अरे….वो बस इतेफाक था,” ‘मैं और अनिका साथ में बोल पड़े।,

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ये भी एक इतेफाक ही है,जब हम दोनों ने एक ही बात साथ बोल दी,पर ये बोल के हम दोनों खुद पे हंस पड़े उधर शुभम तो कुछ ज्यादा ही खुश हुए जा रहा है।

मुझे लगा आज अनिका भी मेरी तरफ थोड़ी सी झुकी है,क्योकिं आज उसने हमारे दरमियाँ की वो दूरी भी मिटा दी जो उस दिन रह गयी थी।

आज उसने जाते वक्त मुझे भी गले लगाया शायद ये दूरी उस दिन हम दोनों के बीच रह गयी थी।

पर आज वो तो खत्म हो गयी और वो खत्म भी रागिनी और शुभम की वजह से हुई।

और सबसे मज़े की बात आज जो रही वो ये कि अनिका रागिनी की दोस्त निकली।

दोनो ने साथ में पढ़ाई की थी पर अब दोनों अलग अलग कॉलेज में पढ़तीं हैं।

दोनो ने साथ में पढ़ाई की थी पर अब दोनों अलग अलग कॉलेज में पढ़तीं हैं।

आज के इस मुलाकात ने मेरे दिल की बेचैनी थोड़ी और बढ़ा तो दी पर आज की इस मुलाकात ने एक सकून के लम्हें भी दिये,अरे शुभम ने मेरे मना करने पे भी अनिका से उसका नम्बर मांग लिया।

और मेरा उसे दे दिया।

नम्बर लेते वक्त वो जरा सा मुस्कुराई तो जरूर थी पर अब कौन जानता है ये मुस्कुराहट कौन सी वाली है।

क्या ये वही वाली मुस्कुराहट है जो मेरे दिल और मेरे अधरों के बीच उसे देख के आती है।

क्या कोई और ये तो वही जानती है।

पर मेरी अनिका के प्रति दीवानगी कुछ ज्यादा ही है।

लोग कहतें हैं कि बिना किसी के बारे में पूरा जाने कुछ भी फैसला नही लेना चाहिए पर दिल पे किसका जोर है,ये तो उस नादान परिंदे की तरह है।

जो उड़ना तो चाहता है पर उसे खबर नही होती कि उसके पंख अभी कोमल हैं।

वैसे भी पहले इश्क का एहसास और खुमार दोनों अलग होता है।

कोई कितना भी समझदार इंसान हो ये उसे भी अपने झोकों में बहा ले जाता है।

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18/3/2016 (शाम का वक्त)

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मैं अपने हॉस्टल के कमरे में बैठा अपनी मोटी मोटी किताबों से जूझ ही रहा था कि अचानक से मेरे मोबाइल का नोटिफिकेशन बजा।

मेरी और मोबाइल की कुछ ज्यादा ही पटती है तो एक मिनट के अंदर ही मैंने तुरन्त अपना फोन चेक किया,मेरे व्हाट्सएप पे आज पहली बार अनिका का मैसेज आया।
जब से नम्बर मिला था मेरा भी मन तो बहुत कर रहा था कि मैं अनिका को टेक्स्ट करूँ पर कभी उतनी हिम्मत नही हो पायी और आज उसका सामने से मैसेज देख के एक पल को भरोसा नही हो रहा था पर ये हकीकत है।

मैंने एक दो पल सोचा और फिर रिप्लाई दे दिया,”

.

मैं,

हेलो,’अनिका जी,’

हे कैसे हो लेखक साहब,”

मैं अच्छा हूँ,आप बताइए,”

मैं भी ठीक हूँ,एक हेल्प चाहिए थी आपसे,”

जी कहिये मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ,”

बात ऐसी है कि मेरे क्रश का बर्थडे है कल तो क्या आप मुझे कोई शायरी लिख के दे सकते हो,और शायरी ऐसी हो जिससे जो बात उसे अभी तक ना समझ में आयी वो समझ मे आ जाये,””अनिका ने शर्माने वाले इमोजी के साथ मानों गुलाब के जैसे मेरे दिल पे कोई कठोर पत्थर फेंक दिया हो।

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मैं दो मिनट तक मानों उस इंसान की तरह से हो गया जिसे रब ने बना तो दिये हों पर उसे दिमाग और समझ देना भूल गयें हों।

एक तरफ अनिका का प्रश्न दूसरी तरफ मेरे दिल का सवाल उसका प्रश्न बार बार मुझसे उसका दोस्त बनाने को बोल रहा था,और दिल तो उससे प्यार कर बैठा है।

दिल और अनिका के प्रश्न में मैं ऐसा उलझ गया कि जाने कब अनिका को उसके क्रश के लिये शायरी लिखने का वादा करके दोस्त बन गया मुझे खुद पता नही चला।

अनिका ने भी ढेर सारा शुक्रिया बोल के एक दोस्ती वाला दिल मेरे व्हाट्सएप इनबॉक्स में भेज दिया।

इस दिल को मेरा दिल कबूल नही कर पा रहा है।

लेकिन अब मेरे सारे एहसासों का अनिका के एहसास के आगे कोई महत्त्व नही रह जाता है।

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इस समय मुझे खुद की ही लिखी पंक्तियाँ याद आने लगीं,,—

.

इश्क ये किस शहर का बाशिन्दा है,

क्या इश्क बस दर्द का ही धंधा है।””,,

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मैं अनिका को मना भी कर सकता था पर मोहब्बत ऐसी चीज है जिसमें आपकी हार से अगर आपके इश्क की जीत होती है तो ये हार भी किसी खूबसूरत जीत से कम नही है।

ये हार जिंदगी भर एक जीते एहसास में जीने के लिए काफी होता है।

और शायद मेरे इश्क को ये एहसास मिलना था,कहीं ना कहीं मैंने अनिका से देखते देखते बहुत मोहब्बत कर बैठ था पर ये उसी निस्वार्थ प्रेम का नतीजा था जो आज खुद के शब्द खुद के लफ्ज़ और खुद के ही हाथों से अपने मोहब्बत के रक़ीब के लिए मैं खुद प्रेम पत्र लिखा पर मुझे कोई जलन और गम नही था बस इस बात की खुशी थी मैं अपनी मोहब्बत को उसकी मोहब्बत दिलाने में कामयाब तो रहा।

वैसे भी अनिका का प्यार भी कम नही रहा होगा उस लड़के के लिए जिसको अपने प्यार का एहसास दिलाने के लिए वो पिछले एक साल से लगी थी।

इस चंद लम्हें की आशिक़ी ने मुझे आशिक तो बनाया पर इस आशिकी ने अनिका जैसी एक दोस्त भी दिलाया,जिसके लिए अब मैं अक्सर शायरियां लिखता हूँ और अब उसे बस एक दोस्त की तरह ही देखता हूँ।

पर आज भी उस एक तरफा इश्क की कसिस दिल के किसी कोने में अभी भो जिंदा है पर अब बस को एक याद और एहसास जैसा ही है और कुछ नही।

जब भी अनिका के चेहरे पे मैं मुस्कुराहट देखता हूँ मुझे उस दिन लिए गए अपने फैसले पे बहुत संतोष होता है।

.

अंत मे बस यही है,

.

“”इश्क अधूरा,

इश्क मुकम्मल है।

इश्क वफ़ा,

इश्क दुआ है।

इश्क जिस्म का तलब नही,

इश्क तो रूह में बसा खुदा है।””

.

आज जब मैं ये उस कैफ़े में बैठ के लिखा रहा था तो ऐसा लगा उस पहली मुलाकात के जैसे अनिका मेरे सामने वैसे ही मुस्कुराती हुई बैठी है जिस तरह से वो उस पहले दिन बैठी थी।

A story by Suraj Sharma🙏

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